Sunday, March 14, 2010

योग

FILEदेखने में आया है कि युवा करियर, प्रेम, जॉब या अन्य कारणों से ‍टेंशन या डिप्रेशन में रहने लगे हैं। इससे साँसों की गति अनबेलेंस हो जाती है, जिससे खून की गति भी असंतुलित हो जाती है। इसका सीधा असर हृदय, फेफड़े, पेट और दिमाग पर होता है। लगातार टेंशन या डिप्रेशन में रहने से गंभीर रोग होने का खतरा बढ़ जाता है जैसे अस्थमा, हार्ट अटैक, डायबिटीज, नेत्र रोग, ब्रेन स्ट्रोक आदि। उक्त सभी से हम जीवन के हर मोर्चे पर असफल हो सकते हैं। प्रस्तुत है इस सब से बचने के लिए योगा टिप्स।क्या होगा प्राणायाम से :योगा एक्सपर्ट और डॉक्टरों का मानना है कि सामान्यत: टाइटल रेस्पिरेशन (श्वसन क्रिया) में फेफड़े के सिर्फ 20 प्रतिशत भाग को ही काम करना पड़ता है। शेष ‍हिस्से निष्‍क्रिय से रहते हैं। इस निष्क्रिय से हिस्सों में रक्त का प्रवाह भी अत्यंत मंद रहता है। यदि हम प्रतिदिन व्यायाम या प्राणायाम न करें, तो वायुकोषों को पर्याप्त ताजी हवा और बेहतर रक्त प्रवाह से वंचित रह जाना पड़ता है। यही वजह है कि हम थोड़े से कार्य के बाद ही बुरी तरह से हाँफने लगते हैं। थोड़े से दुख से ही हम दुखी हो जाते हैं। हम सदा भयभीत जीवन जीने लगते हैं।डॉक्टर कहते हैं कि गहरी साँस न लेने के कारण फेफड़े के शीर्षस्थ भाग में रक्त प्रवाह काफी कम होने से ट्यूबरकुलोसिस जैसी गंभीर बीमारी सबसे पहले फेफड़े के शीर्षस्थ भाग में फैलती है। जब व्यक्ति टेंशन या डिप्रेशन में रहता है तो श्वसन क्रिया का 20 प्रतिशत सक्रिय रहने वाला भाग घटकर 10 से 15 के बीच ही सक्रिय रह पाता है। पर्याप्त वायु के भीतर नहीं जाने के कारण शरीर के अन्य अंग भी निष्क्रिय होने लगते हैं और उनमें रक्त का प्रभाव भी मंद पड़ जाता है, जो कि उम्र को घटाने वाला सिद्ध होता है।लेकिन प्राणायाम करने से फेफड़े में ज्यादा हवा प्रवेश करती है यह सामान्य की तुलना में लगभग चार-पाँच गुना होती है यानी सभी 100 प्रतिशत वायुकोषों को भरपूर ताजी हवा मिलने के कारण पसलियों की माँसपेशियाँ भी ज्यादा काम करती हैं। साथ ही रक्त का प्रवाह भी बढ़ जाता है। इसी तरह दोनों फेफड़ों के बीच बैठा हृदय सब तरफ से दबाया जाता है, परिणाम स्वरूप इसको भी ज्यादा काम करना ही पड़ता है। इस तेज प्रवाह के कारण वे कोशिकाएँ भी पर्याप्त रक्तसंचार, प्राणवायु और पौष्टिक तत्व से सराबोर हो जाती हैं। भोजन से ज्यादा जरूरत जल की और जल से ज्यादा जरूरत हमें ताजा और शुद्ध वायु की होती है अत: प्राणायाम के महत्व को समझा जाना चाहिए।कैसे रहें चिंता मुक्त : जब भी तनावग्रस्त या ज्यादा सोचग्रस्त रहें तो तुरंत ही पेट और फेफड़ों की हवा पूरी तरह से बाहर निकाल दें और नए सिरे से ताजी हवा भरें। ऐसा पाँच से छह बार करें या सिर्फ 30 सेकंट के लिए भ्रस्तिका कर लें। अनुलोम-विलोम नियमित करें। हँसने का मौका हो तो खिलखिलाकर हँसें। अत्यधिक चिंता को छोड़कर निश्चिंतता की आदत डालें।झपकी ध्यान : सिर्फ एक मिनट का झपकी ध्यान करें। ऑफिस या घर में जब भी लगे तो 60 सेकंड की झपकी मार ही लें। इसमें साँसों के आवागमन को तल्लीनता से महसूस करें। गहरी-गहरी साँस लें। यह न सोचे क‍ि कोई देख लेगा तो क्या सोचेगा। हाँ ऑफिस में इसे सतर्कता से करें, वरना बॉस गलत समझ बैठेंगे। इस ध्यान से आप स्वयं को हर वक्त तरोताजा महसूस करेंगे।मौन से होता मन मजबूत: मौन से मन की आंतरिक्त शक्ति और रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। कुछ क्षण ऐसे होते हैं जबकि हम खुद-ब-खुद मौन हो जाते हैं। ऐसा कुछ विशेष परिस्थिति में होता है, लेकिन मौन रहने का प्रयास करना और यह सोचते हुए क‍ि मौन में कम से कम सोचने का प्रयास करूँगा, ज्यादा से ज्यादा देखने और साँसों के आवागमन को महसूस करने का प्रयास करूँगा, एक बेहतर शुरुआत होगी। दो घंटे की व्यर्थ की बहस से 10 मिनट का मौन रिफ्रेश करने से विजन पावर बढ़ेंगा।योगा पैकेज : अनुलोम-विलोम प्राणायाम करें। शवासन में योग निंद्रा का लाभ लें। भोजन के बाद कुछ देर वज्रासन में बैठें या झपकी ध्यान करें। आंजनेय आसन, कटिचक्रासन, ब्रह्म मुद्रा और शीर्षासन को अच्छे से सीखकर करें।

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