Sunday, March 14, 2010

कुछ लोगों के लिए प्रेम योग होता है और कुछ लोगों के लिए रोग। देखने में आया है कि ज्यादातर लोगों के लिए तो प्रेम रोग ही बन जाता है और वह भी ऐसा असाध्य रोग जिसकी दवा खोजना मुश्किल ही है।प्रेम योग होता है या रोग इन दोनों के पक्ष में तर्क जुटाएँ जा सकते हैं, लेकिन असल में तो प्रेम योग ही माना जाता रहा है। वर्तमान युग में कौन करता है नि:स्वार्थ प्रेम। यह तो सब किताबी बातें हैं, इसीलिए तो प्रेम कभी भी योग नहीं रोग बन जाता है।ज्ञानीजन कहते हैं कि कामवासना से संवेदना और संवेदना से प्रेमयोग की ओर बढ़ों। आप जिससे भी प्रेम करते हैं और यदि उसे पाने की चाहत रखते हैं या उसके प्रति आपके मन में कामवासना का भाव उठता है तो फिर प्रेम कहाँ हुआ? या तो कामवासना है या फिर चाहत तो यह दोनों छोड़कर प्रेम की ओर सिर्फ एक कदम बढ़ाओ। फीजिकल एट्रेक्शन को जानवरों में भी होता है।*प्रेम रोगी : 'पागल प्रेमी' या 'दीवाना प्रेमी' नाम तो आपने सुना ही होगा। इस तरह के प्रेमियों के कारनामे भी अखबारों की सुर्खियाँ बनते हैं। कोई अपने हाथ पर प्रेमिका का नाम गुदवा लेता है तो कोई प्रेम में जान भी दे देता है। कितने पागल होंगे वे लोग जो खून से पत्र लिखते हैं।इससे भी भयानक यह कि जब ‍कोई प्रेमिका उसका साथ छोड़कर चली जाती है तो फिर वो उसका कत्ल तक कर देते हैं अब आप ही सोचे क्या यह प्रेम था। प्रेम में हत्या और आत्महत्या के किस्से हम सुनते आए हैं। यह सब किस्से उन लोगों के हैं जो यह तो कामवासना से भरे रहते हैं या फिर चाहत से चिपक जाते हैं। इन्हें प्रेम रोगी भी कहना प्रेम शब्द का अपमान होगा।*प्रेम योग : एक दर्शनिक ने कहा कि नि:स्वार्थ प्रेम परमात्मा की प्रार्थना की तरह होता है ऐसा कहने से शायद आप समझे क्या फिलॉसफी की बात करते हो, तो मैं यहाँ कहना चाहूँगा कि प्रेम करना या होना सबसे बड़ा स्वार्थ है। जो व्यक्ति स्वयं से प्रेम करता है वहीं दूसरों से प्रेम कर सकता है और दूसरों से प्रेम करने में भी स्वार्थ ही होता है, क्योंकि दूसरा जब यह जानता है कि कोई हमें प्रेम करता है तो हमें यह जानकर खुशी होती है कि उसके मन में हमारे प्रति अच्छी भावना है। हम दूसरों को खुश रखने में ज्यादा खुश होते हैं।प्रेम का संबंध स्वतंत्रता और सहयोग से है- चाहत या कामवासना से नहीं। लेकिन विश्व के प्रत्येक व्यक्ति की परिभाषा प्रेम के मामले में अलग-अलग हो सकती है। हम यहाँ आध्यात्मिक प्रेम की बात नहीं करते हम तो सिर्फ आप से पूछते हैं कि यदि आप किसी से प्रेम करते हैं तो आप उसे प्रत्येक स्थिति में सुखी ही रखना या देखना चाहेंगे।*कैसे बनें प्रेम योगी : और भी कई नाम लिए जा सकते हैं किंतु प्रमुख रूप से शिव, नारद और कृष्ण ये लोग प्रेम योगी थे। योग की विशेषता तो शुद्ध और पवित्र प्रेम में ही है। इस प्रेम का वर्णन नहीं किया जा सकता यह अनुभूति की बात है। पहले तो स्वयं से ही प्रेम करना सीखें। फिर दूसरों को समझे अपने भाव और विचारों का अर्थात वह भी उसी दुख और सुख में जी रहा है जिस में तुम। *स्वयं का सामना : दूसरों को जब भी देंखे तो यह समझें कि यह मैं ही हूँ। बस इस भाव को गहराने दें। मोह, राग, विरह, लगाव, मिलन या चाहत से भिन्न यह प्रेम आपके भीतर सकारात्मक ऊर्जा का विकास तो करेगा ही साथ ही आप लोगों से इस तरह मिलना शुरू करेंगे जैसे कि स्वयं से ही मिल रहे हों। यही सफलता का राज भी है।'बिना चाहत और कामवासना के हमें फूलों से प्रेम है'

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