Sunday, May 30, 2010

राग राहुल
जब -जब मंहगाई का ग्राफ चढता है और जनता खून के आंसू रोने लगती है तब-तब कांग्रेस के चतुर रणनीतिकार राग राहुल छेड़ देते हैं. मीडिया प्रबंधकों की टीम के साथ राहुल गांधी को उत्तर प्रदेश के दौरे पर भेज दिया जाता है. वहां राहुल गांधी किसी दलित की झोपडी में दिखाई देते है . किसी दलित बच्चे के साथ फोटो खिचवाते हुए नजर आते हैं. सब जानते हैं कि वहां पर कांग्रेस की महा जनसभा की ताकत तो है नहीं , इसलिए मीडिया के माध्यम से वे मुख्यमंत्री मायावती को कोसते नजर आते हैं. इससे कांग्रेस को अंशकालिक तौर पर यह फायदा होता है कि पब्लिक का ध्यान कुछ समय के लिए ही सही मगर मंहगाई और केन्द्र की गलत नीतियों की तरफ से हट जाता है . मगर आज तक यह समझ नहीं आया कि राहुल गांधी को मीडिया आखिर इतनी तवज्जो क्यों देता है ?यह सवाल मुझसे इतने लोगों ने किया कि मै खुद भी अब अपने आप से यह सवाल करने लगा हूँ. कुछ लोग आशंका व्यक्त करते हैं कि मामला 'पैड न्यूज ' वाला तो नहीं है . हो भी सकता है . आखिर राजनीति में सब जायज है. कुछ कहा नहीं जा सकता . क्योंकि राजनीति में सिर्फ और सिर्फ जीत का महत्त्व है, चाहे वो किसी भी तरह से हासिल की जाए. अब किसी भी तरह में सब कुछ आ जाता है . क्यंकि कभी भी कोई राहुल गांधी से यह नहीं पूछता कि भई , आप ज्यादातर दौरे उन्हीं राज्यों में क्यों करते हो जहाँ पर गैर कांग्रेसी सरकार है ? अब कुछ कांग्रेस समर्थक ये कह सकते हैं कि जहाँ-जहाँ कांग्रेस कजोर है, उसे मजबूत करने का काम राहुल गांधी कर रहे हैं. और जाहिर सी बात है कि जहाँ किसी दूसरे दल की सरकार है वहाँ तो कांग्रेस कमजोर होगी ही, इसीलिए राहुल गांधी वहां पार्टी का संगठन मजबूत करने के लिए जाते हैं. खुद राहुल भी इस बात को बार-बार बल्कि हर बार स्वीकार करते हैं कि वे युवाओं को कांग्रेस पार्टी से जोड़ना चाहते हैं, वे कांग्रेस का संगठन इतना मजबूत करना चाहते हैं कि केन्द्र में स्पष्ट बहुमत की सरकार बन सके. जब राहुल गांधी का सपना बस कांग्रेस को मजबूत करना ही है, तो इसमें कौन सी खास बात हो गयी ? अपने -अपने संगठन को तो सब मजबूत करते ही हैं. जो नेता भाजपा में है, वह भाजपा को मजबूत करेगा , जो बसपा में है वह बसपा को और कोई अन्य अपनी पार्टी को . जिस पार्टी की केन्द्र में सरकार होती है , उसके सांसदों का फर्ज होता है पूरे देश के लिए काम करने का. क्या इस फर्ज को राहुल गांधी निभा रहे हैं ? केन्द्र के अलावा देश के कई राज्यों में कांग्रेस की सरकार है , इसके बावजूद लोगों का बुरा हाल है. करोड़ों पढ़े-लिखे बेरोजगार हैं करोड़ों अनपढ़ हैं और करोड़ों लोग बेघर हैं. कई करोड लोग घास -फूंस के झौप्दों में रहने के लिए अभिशप्त हैं. इसके बावजूद केन्द्र में बैठी निकम्मी सरकार लोगों के जख्मों पर मरहम लगाने के बजाय उन पर नमक छिड़क रही है और राहुल गांधी गरीबों के साथ फोटो खिंचवाकर खुश हैं. करने के नाम पर बस वे उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती को कोस लेते हैं उन पर आरोप लगाते हैं कि उन्होंने दलितों के लिए कुछ नहीं किया . कांग्रेस वाले राहुल बाबा को इतना भी नहीं समझाते कि इस देश पर ज्यादातर राहुल के बाप दादा , नाना की सरकार रही हैं. आज भी पी एम् की कुर्सी पर एक ऐसे व्यक्ति को बैठाया गया है जो सिर्फ नाम के लिए पी एम् है बाकी आदेश राहुल गांधी के परिवार का ही चलता है. तब भी दलितों की हालत बदतर क्यों है ? इसके बावजूद भी देश का भला क्यों नहीं हो रहा ? और राहुल गांधी क्यों नहीं कहते कि दलितों के हित में कोई अभियान चलाइए , पिछड़ों के हित में काम कीजिये , अल्पसंख्यकों की भलाई के लिए कार्य करो. जो बेरोजगार हैं उनके लिए नौकरियों का सर्जन करो या प्रभावी तरीके से उनके लिए ऐसी व्यवस्था करो जिससे कि पढ़े -लिखे बेरोजगार लोग उद्धोग धंधे करके परिवार का पेट पाल सकें. जिनके घर नहीं हैं, उन्हें घर देने की पहल होनी चाहिए . क्या जब भाजपा की सरकार आएगी, राहुल तब उनसे ये मांग करेंगे ?तब इन्हें सब याद आएगा . जिस सरकार ने देश का बेडा गर्क कर दिया , ऐसी सरकार को चलाने वाली मुखिया पार्टी यानि कांग्रेस का संगठन मजबूत करने से फायदा किसको होने वाला है ? सिर्फ और सिर्फ राहुल गांधी को. इस देश के चंद धन्नासेठों को. मुट्ठी भर मिलावट खोरों को . बे ईमानों को , रिश्वतखोरों को ? तो ऐसी पार्टी के संगठन में जुड़ने से क्या युवाओं के पेट की आग बुझ जायेगी ? कब तक राहुल राग छेड़कर देशवासियों को भ्रमित करते रहोगे ? अआखिर कब तक ?
-मुकेश कुमार मासूम

Wednesday, May 5, 2010

विचार मंच 1


कसाव को फंसी होने दीजिए
बचाने के लिए कांग्रेस है न
-मुकेश कुमार मासूम
देश में आतंकवाद के जड़ें दिनों दिन मजबूत होते जा रही हैं। सरकार करने के लिए बस इतना ही करती है कि जहां कहीं बम कांड की घटना होती है वहाँ पर जांच पड़ताल का कार्य तेज कर दिया जाता है, कुछ नियम बदल दिए जाते हैं। बहुत हुआ तो एकाध अधिकारी का तबादला कर दिया जाता है, बम विस्फोट में मरे लोगों के आश्रितों को कुछ मुआवजा दी दिया जाता है, कुछ मंत्री दौरा करते हैं, पुलिस अधिकारी प्रेस कांफ्रेंस करते हैं। जांच कमेटी गठित होती है , और और सब लोग अगले बम कांड होने का इन्तजार करने लगते हैं। १३ फरवरी को पुणे में बम विस्फोट हुआ , उसमे ५ विदेशी सहित १७ लोग से ज्यादा मारे गए । कई घायल हुए। गृह मंत्री आर आर पाटिल ने खुद सदन को बताया कि आरोपियों की शिनाख्त कर ली गयी है। मगर क्या हुआ । आज इतने महीनों के बाद भी कुछ नहीं हुआ । सरकार कहती रही कि इस बम कांड में इंडियन मुजाहिदीन का हाथ है लेकिन सिर्फ कहने भर से क्या हुआ ? पुलिस सिर्फ यही कहती रही कि 'जांच सही दिशा में चल रही है ' । २६ नवंबर २००८ को क्या हुआ ? महज दस लोगों की फ़ौज ने मुंबई पर हमला कर दिया। यानी कि देश पर हमला कर दिया। सारा ख़ुफ़िया तंत्र , सारी पुलिस, नेवी अधिकारी सब देखते रह गए और दस लोग मुंबई को तहस -नहस कर गए। उनमे से ९ आतंकवादी मारे गए और अब दसवा जीवित बचा है - कसाव। आमिर अजमल कसाव की सुरक्षा पर ट्रायल के दौरान महाराष्ट्र सरकार ने ३१ करोड रुपये खर्च किये । भारत जैसे गरीब देश के लिए खर्च की रकम का यह आंकडा मामूली नहीं हो सकता। आज उसी कसाव को विशेष अदालत सजा सुनाएगी , बहुत संभव है उसे फांसी की सजा ही दी जाए , और यह सब पुलिस अधिकारियों के अथक परिश्रम , सबूत , गवाह आदि के बल पर और सरकारी वकील के तर्कों की बदौलत संभव हो सकेगा। मगर सजा सुनाये जाने के बाद भी क्या किलिंग मशीन कसाव को फांसी पर इतनी आसानी से चढाया जा सकता है ? इसे लेकर देश में संशय का माहौल है । सब जानते हैं कि अभी तक ५० ऐसे खतरनाक अपराधी हैं, जिन्हें वर्षों पहले फांसी की सजा तो सुनाई जा चुकी है मगर अभी तक फांसी का फंदा उसनके गले से बहुत दूर है। क्योंकि उन्होंने राष्ट्रपति के पास दया याचिका कर रखी है। अब तर्क की बात ये है कि जब पहले से ही खूंखार अपराधी सजा भुगतने के लिए वोटिंग लिस्ट में हैं तो इस नए मामले का क्या होगा ? संसद अर्थात देश के सबसे बड़ी पंचायत पर हमला हुआ।उस आरोप में अफजल गुरु नामक अपराधी को गिरफ्तार किया गया। सर्वोच्च अदालत ने उसको फांसी की सजा सुनाई , लेकिन आज भी वह ज़िंदा है। उसने मर्सी पिटीशन जो डाल रखी है, जिसका क्रमांक २८ है । जाहिर सी बात है कि जब तक पहले ५० अपराधियों को फांसी नहीं दी जाती , अथवा उनका कोई फैसला नहीं होता तब तक कसाव भी सरकारी मेहमान नवाजी का लुत्फ़ उठा सकता है और ईद के दिन तो नॉन वेज भी खा सकता है। भारत सरकार पहले भी मौलाना मसूद अजहर , उम्र शेख और मुस्ताक जरगर जैसे खतरनाक अपराधियों को छोड़ चुकी है । अब तो आम आदमी को यह पक्का भरोसा हो गया है कि कोई भी दुश्मन हमारे यहाँ आकर तबाही मचा सकता है, हमारे जवानों पर गोलियाँ बरसाकर उन्हें शहीद कर सकता है मगर सजा उसे कुछ नहीं मिलेगी । अगर सजा का ऐलान हो भी गया तो कांग्रेस है न। बचा लेगी ।आखिर 'धर्मनिरपेक्षता ' का सवाल जो है । और बिना ऐसे सवालों के वोट नहीं मिला करते । सत्ता चाहिए तो वोट भी चाहिए ही। और वोट के लिए दया का दिखावा भी जरूरी ह